11वीं योजना के दौरान 78,000 मेगावाट की अतिरिक्त क्षमता जोड़ने का प्रस्ताव
11वीं योजना के दौरान 78,000 मेगावाट की अतिरिक्त क्षमता जोड़ने का प्रस्ताव
विद्युत मंत्रालय की सलाहकार समिति की बैठक आयोजित
विद्युत मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की आज नई दिल्ली में बैठक हुई । बैठक में 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान विद्युत उत्पादन की अतिरिक्त क्षमता जोड़ने के मुद्दों पर चर्चा हुई । सदस्यों को सम्बोधित करते हुए समिति के अध्यक्ष तथा विद्युत मंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि हालांकि बिजली एक समवर्ती विषय है, लेकिन राज्य बिजली बोर्डों और इकाइयों की वित्तीय तथा संचालन हालत में गिरावट की वजह से केन्द्र को न केवल उत्पादन के क्षेत्र में बल्कि ग्रामीण विद्युतीकरण के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ रही है, जबकि ग्रामीण विद्युतीकरण पूरी तरह से राज्य का विषय है । उन्होंने सदस्यों को बताया कि केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण ने अनुमान लगाया है कि दसवीं तथा 11वीं योजना अवधि के दौरान 1,00,000 मेगावाट की अतिरिक्त विद्युत उत्पादन क्षमता हासिल करनी होगी । 10वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान वास्तविक रूप में केवल 21,180 मेगावाट विद्युत उत्पादन क्षमता हासिल की जा सकी थी । इसलिए 11वीं योजना के दौरान 78,000 मेगावाट क्षमता जोड़नी होगी, जिसमें 40,000 मेगावाट केन्द्रीय क्षेत्र में, 28,000 मेगावाट राज्य क्षेत्र में तथा 10,000 मेगावाट निजी क्षेत्र में जोड़ने का प्रस्ताव है ।
मंत्री महोदय ने कहा कि 78,000 मेगावाट में से, 1800 मेगावाट की परियोजना चालू हो चुकी है और 51,000 मेगावाट क्षमता की परियोजनाओं (प्रस्तावित क्षमता का 65 प्रतिशत) पर काम चल रहा है और शेष परियोजनाओं के लिए अनुमान है कि दिसम्बर, 2007 तक आर्डर देने की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी । श्री शिंदे ने कहा कि कई अग्रणी देशों में ऐसे स्वदेशी आपूर्तिकर्ता हैं, जिनकी निजी क्षमता भारत के उपकरण निर्माताओं की तुलना में साढे तीन गुणा ज्यादा है । इसलिए, मंत्री महोदय ने देश के उपकरण निर्माताओं को मजबूत बनाने की जरूरत पर बल दिया ताकि स्वदेशी बिजली परियोजनाओं को उपकरणों की देश में ही आपूर्ति हो सके ।
सदस्यों ने 11वीं योजना के लिए बढे हुए लक्ष्य पर चिंता जताई और 2012 तक सभी को बिजली उपलब्ध कराने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए क्षमता निर्माण योजना के कार्यान्वयन के लिए कई सुझाव दिए । इनमें पर्याप्त नियोजन, नियमित निगरानी, उपकरण निर्माताओं पर कम निर्भरता तथा समन्वित प्रयास शामिल हैं ।
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