आर्थिक सर्वेक्षण - चुनौतियां, नीतिगत अनुक्रिया और मध्यावधि संभावनाएं

28 फरवरी 08/वित्त मंत्री श्री पी.चिदम्बरम द्वारा आज संसद में प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण-2007-08 में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक उच्चतर वृध्दि पथ पर अग्रसर हुई है। नई चुनौती इसे और बढाक़र द्विअंकीय स्तरों पर लाने के बजाय इसे इन्हीं स्तरों पर बनाए रखने की है। अवसंरचना विकास की गति को त्वरित करने के प्रयासों के बावजूद अवसंरचना सेवाओं की मांग में आपूर्ति की तुलना में अधिक तेजी से वृध्दि हुई है जिससे इसके अवरोध अधिक बाध्यकारी बन गए हैं। अत: भौतिक और सामाजिक अवसंरचना तथा विशेष रूप से विद्युत, सड़कों और विमानपत्तनों का वर्धन करने तथा उनका उन्नयन करने की अत्यधिक तत्कालिकता है। सरकारी क्षेत्र हमसे अपेक्षा करता है कि हम देश में सरकार के विभिन्न स्तरों तक संस्थानिक कमजोरियों तथा क्रियान्वयन अवरोधों का निवारण करें। निजी क्षेत्र के लिए ऐसी नीति तथा विनियमों की आवश्यकता है जो व्यापक किन्तु सरल तथा स्पष्ट विश्वसनीय हो।
आर्थिक सर्वेक्षण में कई चुनौतियों, नीतिगत अनुक्रिया और मध्यावधि संभावनाओं का पता लगाया गया है। इन्हें निम्न रूप में संक्षिप्त रूप में बताया गया है।
यदि सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर में वृध्दि का यह रूझान मध्यावधि तक जारी रहता है तो 11वीं पंचवर्षीय योजना अवधि में अर्थव्यवस्था 8.9 प्रतिशत प्रतिवर्ष से अधिक की औसत वृध्दि हासिल कर लेगी। यदि हम 11वीं पंचवर्षीय योजना का सकल घरेलू उत्पाद वृध्दि लक्ष्य हासिल कर लें और आने वाले वर्ष में वृध्दि दर बढाक़र 9.5 प्रतिशत के स्तर तक ले आयें तो भारतीय अर्थव्यवस्था का वृध्दि दर औसत एक दशक में 9 प्रतिशत हो जाएगा। इस उपलब्धि में लगभग 12 मध्यम विशाल अर्थव्यवस्थाओं के चयनित समूह में शामिल हो जाएंगे। सर्वेक्षण में यह बताया गया है कि मांग पक्ष में तेजी से वृध्दि निवेश के कारण हुई है और यह निजी उपयोग द्वारा समर्थित है। मध्यावधि में अर्थव्यवस्था की घरेलू मांग चालित बने रहने की संभावना है।
सतत् आधार पर उच्च सकल घरेलू उत्पाद वृध्दि को बनाए रखने में हमारे समक्ष दो अंत:संबंधित वृहद आर्थिक चुनौतियां हैं। ये पूंजीगत अंतर्वाहों तथा मुद्रा स्फीति से संबंधित हैं। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सहित पूंजी अंतर्वाहों में उछाल मध्यावधि में जारी रहेगा। अर्थव्यवस्था की संरचना में परिवर्तन तथा इसके अधिक वैश्वीकृत स्वरूप ने मुद्रा स्फीति प्रबंधन को एक जटिल कार्य बना दिया। कृषि भिन्न उत्पादों पर प्रशुल्कों के अपचयन ने भारतीय तथा वैश्विक मुद्रा स्फीति दरों की समाभिरूपता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
खपत समूह में खाद्य पदार्थों के विशाल अंश सहित कृषिगत उत्पादों पर उच्च प्रशुल्कों तथा कृषि पर उच्च लोगों की निर्भरता सहित भारतीय कृषि तथा कृषि प्रसंस्करण के धीमे आधुनिकीकरण के बीच अंत:क्रिया भावी मुद्रा स्फीति में भूमिका निभाएंगे।
मुद्रा स्फीति तथा वास्तविक ब्याज दर, दोनों में आगे और समाभिरूपता संभव है यदि हम भारत के त्रऽण और मुद्रा बाजारों को उदार बना दें और उनका विकास करें तथा कृषि आधुनिकीकरण एवं शहरी भूमि आपूर्ति पर प्रतिबंधों को हटा दें।
यद्यपि संयुक्त राज्य अमरीका को हमारे निर्यात 2006-07 में पहले ही कम हो रहे थे, और अधिक मंदन अपरिहार्य नहीं होगा। किन्तु वह सापेक्षतया साधारण होगा। विश्व आयातों में गिरावट के कारण ही तेल सहित, पण्य वस्तुओं के लिए मांग की संवृध्दि और उनकी अन्तर्राष्ट्रीय कीमतों में गिरावट होगी। इन दो कारकों के परिणामस्वरूप वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार घाटे में साधारण वृध्दि हो सकती है, जब तक की संयुक्त राज्य अमरीका में कोई कठोर मंदन नहीं आता।
आपूर्ति पक्ष पर मध्यावधि में संवृध्दि को बनाये रखने की सर्वाधिक महत्वपूर्ण चुनौती, पर्याप्त भौतिक और वित्तीय अवसंरचना की उपलब्धता है। सरकारी और निजी वस्तुओं के अर्थ में अवसंरचना संबंधी वस्तुओं और सेवाओं तथा #न्नअर्ध्द-सरकारी वस्तु न्न के बीच के संदिग्ध क्षेत्र पर ध्यान देना अनुदेशात्मक है।
शहरी विकास और मौजूदा शहरों तथा नगरों का नवीकरण अवसंरचना विकास का एक अन्य क्षेत्र है जो तेजी से बढती हुई अर्थव्यवस्था में शहरी आवास और व्यापार परिसरों की बढती हुई मांग की पूर्ति हेतु अत्यावश्यक है।
केन्द्रीय क्षेत्र कार्यक्रम जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों ने इस दिशा में कुछ बढावा दिया है। किन्तु राज्यों विशेषतया गरीब राज्यों को अपने स्तर तक कुछ करना होगा।
हालांकि योजना के क्रियान्वयन के प्रगति में व्यय एक महत्वपूर्ण सूचक है किन्तु यह मनोवांछित परिणामों तक पहुंचने मे व्यय की प्रभावकारिता का मापन नहीं करता है। इसलिए वित्तीय निगरानी से लेकर लागत और परिणाम की प्रणालीबध्द निगरानी करना महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
चुनौतियां और अवसर दोनों स्तरों पर उभरते हैं। गैर मुद्रा स्फीति वाले विकास को आसान बनाने हेतु सकारात्मक निवेश वातावरण उपलब्ध कराने और वृहत वृहद अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए केन्द्र सरकार कार्यरत है। केन्द्र सरकार और योजना आयोग कुछ खास क्षेत्रों और उपक्रमों में भी नीति और संस्थागत सुधारों की एक रूप रेखा तैयार करने में नेतृत्वकारी भूमिका निभा सकते हैं जिससे कई दशकों के लिए उच्च विकास कायम रहेगा। दूसरे स्तर पर राज्यों को उन सार्वजनिक सुविधाओं के प्रावधान पर अपने प्रयासों को फिर से केन्द्रित करना होगा जिन राज्यों की ओर से उपेक्षा की गई है उन्हें इन सुविधाओं द्वारा उपलब्ध सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार लाना होगा। क्योंकि इन सुविधाओं और सेवाओं के वितरण हेतु आधिकारिक क्षमताएं पर्याप्त मात्रा और पर्याप्त गुणवत्ता में उपलब्ध होने में काफी बाधाएं हैं, इसलिए उन्हें वैसी अन्य गतिविधि से अलग रहना चाहिए, जिन्हें निजी मुनाफा और गैर मुनाफा वाले द्वारा अच्छे तरीके से किया जा सकता है और इस क्षेत्र पर विशिष्टता पर केन्द्रित करना चाहिए। अपने बहुसंख्यक नागरिकों को संतुष्ट करने और उनकी वैधानिक आकांक्षाओं को पूरा करने का एकमात्र उपाय है।

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