महात्मा का शांति संदेश दुनिया के कोने कोने में पहुंचा

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महात्मा का शांति संदेश दुनिया के कोने कोने में पहुंचा

इस वर्ष महात्मा गाँधी की 138वीं जयंती का समारोह बहुत धूमधाम से मनाया जा रहा है क्योंकि पहली बार दुनिया भर के  राष्ट्र इसमें शामिल हो रहे हैं। दुनिया भर में शांति का संदेश फैलाने के लिए 2 अक्टूबर को 'अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस' के रूप में मनाया जायेगा और यह अभूतपूर्व और युग प्रवर्तक निर्णय लेने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा बधाई की पात्र है।  अहिंसा की सार्वभौमिक प्रासंगिकता को फिर से पुष्ट करने के लिए भारत की पहल तथा दुनिया भर के अधिसंख्य देशों के सह-प्रायोजन में यह प्रस्ताव 15 जून को स्वीकार किया गया। संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव इस बात पर जोर देता है कि अहिंसा, सहनशीलता, मानवाधिकारों के लिए पूरा सम्मान और सबके लिए मूलभूत आजादी, लोकतंत्र, विकास, आपसी समझ तथा विविधता के लिए सम्मान परस्पर संबंधित और पुनर्बलदायक है। प्रस्ताव कहता है कि महासभा 62वें सत्र में हर साल 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का फैसला करती है ताकि यह अंतर्राष्ट्रीय दिवस इस समारोह और इस तिथि के अवलोकन के लिए सब लोगों का धयान आकर्षित कर सके। महासभा सभी सदस्य देशों, गैर-सरकारी संगठनों और व्यक्तियों को इस दिन के स्मरणोतसव तथा शिक्षा और जन जागरूकता के जरिए अहिंसा का संदेश फैलाने के लिए भी आमंत्रित करती है। शांति, सौहार्द और अहिंसा के संदेश को फैलाने में राष्ट्रपिता के आजीवन संघर्ष को सम्मान देने के लिए ेसंयुक्त राष्ट्र का यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। संयुक्त राष्ट्र का यह फैसला ऐसे समय आया है जब सभी राष्ट्र हिंसक संघर्ष में उलझे हुए हैं और हिंसक गतिविधियां बढ़ रही हैं।

गाँधी जी और शांति :

इतिहास ने यह सिध्द कर दिया है कि मोहनदास करमचंद गाँधी और विश्व शांति को अलग-अलग नहीं किया जा सकता। गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में नागरिक अधिकारों के लिए भारतीय समुदाय के संघर्ष में शांतिपूर्ण नागरिक अवज्ञा के अपने विचारों पर अमल किया। भारत में उन्होंने उत्पीडक कर प्रणाली और व्यापक भेदभाव के खिलाफ आंदोलन के लिए गरीब किसानों और मजदूरों को संगठित किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व अपने हाथ में लेकर गाँधी जी ने गरीबी निवारण, महिलाओं की स्वतंत्रता, विभिन्न धर्मों और जातियों में भाइचारे, अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव खत्म करने तथा राष्ट्र की आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा किया। इस सबसे भी बढ़कर उन्होंने स्वराज यानी विदेशी गुलामी से भारत की आजादी के लिए व्यापक आंदोलन चलाया। अपने गृह राज्य गुजरात में किसानों के लिए शांतिपूर्वक आंदोलन के दौरान गाँधी जी को लोगों ने बड़े प्यार से बापू (राष्ट्रपिता) और महात्मा (महान आत्मा) से संबोधित किया। महात्मा शब्द की उत्पत्तिा संस्कृत शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ महान आत्मा है।

गाँधी जी और अहिंसा :

अहिंसा और सत्य आजीवन उनके जाँचे परखे हथियार रहे और उन्होंने अत्यधिक विपरीत स्थितियों में भी बेहद सावधानी से उन पर अमल किया। वे आजीवन सादे शाकाहारी रहे और लंबे समय तक आत्म शुध्दि तथा अपनी न्यायोचित माँगों के समर्थन में विरोध के लिए कड़ाई से उपवास किया। भूख हड़ताल के माधयम से गाँधी जी को ब्रिटिश शासन से भारत को आजाद कराने, आजादी के लिए उपनिवेशीय लोगों को प्रेरित करने तथा अंतत: ब्रिटिश साम्राज्य को विखंडित करने में मदद मिली। गाँधी जी के सत्याग्रह (सच्ची ताकत) ने मार्टिन लूथर जूनियर और नेल्सन मंडेला सहित कई पीढ़ियों को लोकतंत्र के लिए और नस्लभेद के विरूध्द गतिविधियाँ चलाने की प्रेरणा दी। गाँधी जी अक्सर कहते थे कि उनके मूल्य साधारण हैं और सत्य और अहिंसा के पारपंरिक विश्वास से उपजे हैं। गाँधी जी के दर्शन और सत्य व अहिंसा के उनके विचारों पर भगवद् गीता तथा लिओ टॉलस्टॉय के लेखन का प्रभाव पड़ा। वे नागरिक अवज्ञा पर हेनरी डेविड थोरेऊ के मशहूर निबंध से भी प्रभावित हुए।

गाँधी जी और असहयोग :

गाँधी जी ने अन्याय के विरूध्द अपने संघर्ष में असहयोग और शांतिपूर्ण विरोध इन दो शक्तिशाली हथियारों का प्रयोग किया। बाद में अपनी समस्याओं के समाधान के लिए अहिंसक तरीकों में दुनिया भर के नेताओं की बढ़ती रुचि देखने को मिली। महात्मा गाँधी के बाद संभवत: इसी भावना से प्रभावित होकर संयुक्त राष्ट्र ने गाँधी जी के जन्म दिवस को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया।

गाँधी जयंती एवं समारोह :

संयुक्त राष्ट्र के निर्णय से उत्साहित होकर  केन्द्र सरकार ने इस वर्ष गाँधी जयंती को धूमधाम से मनाने का फैसला किया। यह दिन 'राष्ट्रीय समर्पण दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। देश भर में शुरू किए गए 'संपूर्ण स्वच्छता अभियान' में तेजी लाने के लिए गाँधी जी के जन्म दिवस को ''स्वच्छता दिवस'' के रूप में भी मनाया जाएगा। हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गाँधी जी का दर्शन वर्तमान के साथ-साथ भावी पीढ़ियों को भी मार्गदर्शन उपलब्ध कराने के लिए शक्ति और प्रेरणा का स्तम्भ बना हुआ है। जैसे-जैसे वर्ष बीतते जाते हैं गाँधी के विचारों की अमरता और मजबूत होती जाती है।

 

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