खतरनाक है सनसनींखेंज घटनाओं का प्रसारण

खतरनाक है सनसनींखेंज घटनाओं का प्रसारण

निर्मल रानी

163011, महावीर नगर, अम्बाला शहर,हरियाणा फोन-98962-93341  

 

       पंजाब के पटियाला शहर में दो वर्ष पूर्व जब एक रेहड़ी दुकानदार द्वारा अपने ही ऊपर पेट्रोल छिड़क कर स्वयं को जिंदा जलाने का दृश्य कुछ टीवी चैनल्स द्वारा दिखाया गया था, उस समय बेशक इस हृदय विदारक दृश्य को देखने वालों की संख्या में अचानक कांफी इंजांफा हो गया था। यदि मीडिया की ही तकनीकी भाषा में कहा जाए तो इस सनसनींखेंज दृश्य को देखने के लिए अचानक उन चैनल्स की टी आर पी कांफी बढ़ गई थी। निश्चित रूप से चैनल संचालक चाहते भी यही हैं कि इसी प्रकार की सनसनींखेंज ंखबरें व इनके दृश्य उन्हें मिलते रहें, उनके टी आर पी में दिनों दिन बढ़ोत्तरी होती रहे, उनका चैनल ऐसी सनसनींखेंज ंखबरों के दम पर लोकलुभावन चैनल बन सके तथा उन्हें इस घटिया प्रसिद्धि की बदौलत पर्याप्त विज्ञापन मिल सकें।

              दूसरी ओर इन सनसनींखेंज घटनाओं को अंजाम देने वाले लोगों के दिनों दिन बढ़ते हौसले को देखकर भी यही लगता है कि ऐसे प्रसारणों ने ही उन्हें कांफी प्रोत्साहित किया है। अब तो जब देखो तब किसी व्यक्ति अथवा दम्पत्ति के पानी के टंकी पर चढ़ जाने का समाचार सुनाई देता है। कोई अपनी मांगें मनवाने के लिए बिजली की उच्च क्षमता वाले पोल टॉवर पर चढ़ा दिखाई दे जाता है। दहशत फैलाने वाली ऐसी घटनाओं को तत्काल सीधे प्रसारण के रूप में टीवी पर देखने से तो एक बार ऐसा भी लगने लगता है कि मानो पीड़ित व्यक्ति ने अपनी जान पर खेलने से पूर्व ही टीवी पत्रकारों से सम्पर्क कर उन्हें घटना स्थल पर पहले ही बुला लिया हो। ऐसे समाचार प्रसारित होते देख भावुक दर्शकों की सांसें रुक जाती हैं। जल्दी ही भावनाओं में बह जाने की प्रवृत्ति रखने वाला भारतीय दर्शक ऐसी ंखबरों के प्रसारण के समय अपने टीवी सेट से उस समय तक चिपका रहता है जब तक उक्त घटना की इतिश्री नहीं हो जाती। घटना के अन्त तक भारतीय दर्शक प्रभावित व्यक्ति के लम्बे जीवन की दुआएं मांगता रहता है।

              अभी पिछले दिनों इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों के इसी उतावलेपन व सनसनी फैलाने की उनकी ललक ने तो मीडिया की नीति संबंधी सभी हदों को पार कर दिया था। वाराणसी में हुए इस हादसे में कुछ बेरोंजगार विकलांग व्यक्तियों की ंजहर खाने से मौत तक हो गई थी। प्रशासन का आरोप था कि टीवी पत्रकारों ने ही उन युवाओं को उकसाकर ंजहर खाने हेतु प्रेरित किया। इस संबंध में उन पत्रकारों के विरुद्ध बांकायदा मामला भी दर्ज हुआ है तथा पुलिस तंफतीश की जा रही है।

              ऐसी घटनाएं केवल मीडिया द्वारा सनसनींखेंज खबरों को प्रसारित कर समाज में सनसनी फैलाने तथा अपना व्यापार चमकाने जैसे षडयंत्र को ही उजागर नहीं करतीं बल्कि इन घटनाओं से इस बात का भी ंखतरा है कि अपनी जान पर खेलकर अपनी मांगें मनवाने जैसा ंखतरनाक खेल कहीं रोंजमर्रा होने वाली आम घटनाओं जैसा ढर्रा तो अख्तियार करने नहीं जा रहा है? सामाजिक दृष्टिकोण से तो दोनों ही बातें न्यायसंगत प्रतीत नहीं होती। ऐसी घटनाओं को लेकर जब पिछले कुछ समय से चर्चाओं के बांजार गर्म हुए तथा आम लोगों ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों द्वारा इस प्रकार के सीधे कवरेज को सनसनी फैलाने वाले ंगैर ंजिम्मेदाराना कवरेज की संज्ञा देनी शुरु की तो कुछ चैनल्स के जिम्मेदार लोगों ने अपना बचाव करते हुए फिल्म जगत को ऐसी घटनाओं को प्रोत्साहित किए जाने का जिम्मेदार ठहराया। उदाहरण स्वरूप शोले फिल्म में वीरू का पानी की टंकी पर चढ़कर मौसी से बसन्ती का हाथ मांगा जाना, मौसी द्वारा वीरू की मांग न मानने पर पानी की टंकी से कूदकर जान दे देने की धमकी देना तथा इस धमकी के उपरान्त मौसी द्वारा वीरू की मांग का मान लिया जाना आदि तर्क पेश किए जा रहे हैं।  परन्तु ऐसा तर्क पेश करने वाले शोले फिल्म के इस दृश्य में गंभीर पक्ष को ंगलत उजागर कर रहे हैं। इस दृश्य में व्यंग्य विनोद प्रधान था जबकि गंभीरता नाम मात्र

              परन्तु हंकींकत की दुनिया में जब और जो कुछ घटित होता है उन परिस्थितिं की तुलना फिल्मी कहानी क़िस्सों व दृश्यों से हरगिंज नहीं की जा सकती। हम सभी समाज के सदस्य हैं। एक टीवी पत्रकार, सम्पादक अथवा उसका मालिक, कोई भी क्यों न हो, विषम परिस्थितियां कभी भी किसी के भी दरवांजे पर दस्तक दे सकती हैं। समाज के प्रत्येक जिम्मेदार व्यक्ति का यह दायित्व है कि उन ंखतरनाक परिस्थितियों में अवसर, व्यापार व लाभ आदि की संभावनाओं की तलाश करने के बजाए उन हालात को टालने का प्रयास किया जाए। ऐसी कोशिश की जानी चाहिए कि किसी भी नकारात्मक परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति को कोई नुंकसान न पहुंचने पाए।

              लगभग पांच वर्ष पूर्व गुजरात में हुए साम्प्रदायिक दंगों में इसी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का एक पत्रकार वर्ग जहां आम लोगों के ंजिंदा जलाए जाने, बस्तियों में आग लगाए जाने, लूटमार तथा हत्या जैसे भयावह दृश्य अपने न्यूंज रूम को पूरी निरंतरता से भेजे जाने में लगा था, वहीं इन्हीं में कुछ पत्रकार ऐसे भी थे जो घायलों व पीड़ितों की मदद करने में जुटे थे। उन्हें अपना पहला ंफंर्ज किसी तड़पते हुए व्यक्ति की जान की रक्षा करना नंजर आ रहा था न कि उस व्यक्ति के हृदय विदारक चित्र दिखलाकर लोगों में सनसनी फैलाना। यह भी सत्य है कि मीडिया अभी तक इसी पसोपेश में उलझा हुआ है कि आंखिर उनकेर् कत्तव्य प्राथमिकता के आधार पर हैं क्या? पूरी पारदर्शिता बरतते हुए घटनाओं का हूबहू चित्रण प्रस्तुत करना अथवा प्रसारण के समय इस बात पर भी नंजर रखना कि इस सच्चाई के प्रसारित होने के कौन-कौन से फायदे व नुंकसान हो सकते हैं? तथा उनको मद्देनंजर रखते हुए समाचारों का संकलन, सम्पादन व प्रसारण करना। परन्तु एक बात तो आईने की तरह बिल्कुल सांफ है कि मानवीय हितों से सर्वोपरि कुछ भी नहीं हो सकता। शायद अपना तथाकथितर् कत्तव्य भी नहीं। यदि मानवता ही समाप्त हो गई तो इन प्रसारणों को देखेगा कौन तथा इन सनसनींखेंज खबरदाताओं को विज्ञापन कौन मुहैया कराएगा। मानवीय पक्ष से तो कोई भी अछूता नहीं है। न ही समाज का साधारण व्यक्ति, न पत्रकार, न चैनल का स्वामी और न ही विज्ञापनदाता व्यापारी वर्ग। लिहांजा प्रत्येक सनसनींखेंज समाचारों के संकलन, सम्पादन व प्रसारण में मानवीय पक्ष का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।

              आज अपनी जान देने की धमकी देकर अपनी बातें मनवाने का दृश्य पेश करने वाली घटनाओं में कांफी बढ़ोत्तरी हो गई है। आम आदमी इन घटनाओं में वृद्धि के लिए टीवी चैनल को जिम्मेदार मान रहा है। गुजरात दंगों में भी इसी प्रकार की आलोचना सुनने को मिली थी कि दंगों में दहशतनाक चित्रण बार-बार दिखलाकर दंगा भड़काने में मदद मिली। ऐसे आरोपों से मीडिया को बचने की कोशिश करनी चाहिए। निश्चित रूप से सत्य को उजागर करना मीडिया की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। परन्तु इस कथन को भी हम कैसे नकार सकते हैं कि सत्य बहुत कड़वा होता है। लिहांजा इन दोनों बातों के साथ-साथ यदि मानवीय पक्ष का भी ध्यान रखकर समाचार प्रसारित किए जाएं तथा उन समाचारों में अकारण सनसनींखेंज मसाला मिलाने की कोशिश न की जाए तो ऐसा नहीं है कि दर्शकों को सही समाचार नहीं दिया जा सकेगा।

              लिहांजा जरूरत इस बात की है कि मीडिया विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपनी इन ंजिम्मेदारियों को बंखूबी समझे कि कब कौन सा समाचार किस रूप में पेश किया जाना है। इसके दूरगामी प्रभाव क्या हो सकते हैं तथा इसका संबंधित पक्ष पर तत्काल क्या प्रभाव पड़ेगा? सनसनी फैलाने हेतु ंजबरदस्ती ंखबर बनाने अथवा सनसनींखेंज ंखबरों का चक्रव्यूह रचने से कुछ हासिल नहीं होने वाला। ऐसी स्थितियां न सिंर्फ टीवी चैनल्स की घटिया मानसिकता को प्रदर्शित करती हैं बल्कि इन्हीं कारणों से ही इन टीवी चैनल्स में आपसी संघर्ष व खींचतान भी सांफ देखी जा सकती है। लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को ऐसे सभी दुष्प्रयासों से पूरा ंखतरा है तथा समय रहते इनपर अंकुश लग जाना चाहिए।

 

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