पुलिस महानिदेशकों और पुलिस महानिरीक्षकों के सम्मेलन में प्रधामनंत्री डा0 मनमोहन सिंह का सम्बोधन
पुलिस महानिदेशकों और पुलिस महानिरीक्षकों के सम्मेलन में प्रधामनंत्री डा0 मनमोहन सिंह का सम्बोधन
प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह ने कल यहां पुलिस महानिदेशकों और पुलिस महानिरीक्षकों के सम्मेलन-2007 को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने पुलिस कार्मिकों को उनकी विशिष्ट सेवा के लिए वर्ष 2006 के राष्ट्रपति पुलिस पदक भी प्रदान किए।
डा0 मनमोहन सिंह द्वारा इस अवसर पर दिए गए के सम्बोधन का पाठ इस प्रकार है :
''सबसे पहले मैं विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक प्राप्त करने वाले कर्मियों को हार्दिक बधाई देता हूं। यह पुरस्कार कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने में आपके प्रतिबध्द योगदान का परिचायक है। मैं इस अवसर पर आतंकवाद और अस्थिरता फैलाने वाली ताकतों के खिलाफ हिम्मत और बहादुरी से संधर्ष करने में महत्तवपूर्ण योगदान करने वाले पुलिस बन्धुवों की सराहना अवश्य करना चाहूंगा। मैं यह बात भली-भांति समझता हूं कि आपने भारी दबावों और अपर्याप्त संसाधनों के बीच सभी उपलब्धियां हासिल की हैं।
पुलिसकर्मी भी एक किसान, श्रमिक और शिक्षक की भांति सभ्य समाज का अनिवार्य स्तम्भ हैं। मैं समझता हूं कि किसी राष्ट्र या समाज का मूल्यांकन इस आधार पर किया जा सकता है कि वह इनमें से प्रत्येक व्यवसायी के साथ किस तरह का व्यवहार करता है। वही राष्ट्र भाग्यशाली कहा जायेगा, जिसमें परिश्रमी एवं उत्पादक किसान और श्रमिक हों तथा समर्र्पित एवं प्रतिबध्द शिक्षक और पुलिसकर्मी हों। कानून का शासन किसी भी आधुनिक समाज का सुदृढ़ आधार होता है। और कानून के इस शासन के प्रवर्तन के लिए पुलिस राज्य के महत्तवपूर्ण संस्थानों में से एक है। मैं सभी पुलिस कर्मियों को आश्वासन देता हूं कि सरकार उनके कल्याण और व्यावसायिक विकास के प्रति पूरी तरह वचनबध्द है। इसके बदले हम पुलिस बलों से उम्मीद करते हैं कि वे निडर, प्रतिबध्द, सक्षम और सुदृढ़ होकर काम करेंगे। इसके साथ ही हम यह उम्मीद भी करते हैं कि वे न्यायोचित, मानवीय और ईमानदारी पूर्ण ढंग से कार्य करेंगे।
देश की आंतरिक सुरक्षा की स्थिति केंद्र और राज्य सरकारों, दोनों के लिए निरंतर चिंता का विषय रही है। मैं अकसर कहता हूं कि आज हमें घरेलू चुनौतियों का सामना अधिक करना पड़ रहा है। उनमें आंतरिक सुरक्षा सबसे चुनौतियों में से एक है।
आंतरिक सुरक्षा वातावरण की समीक्षा करने पर हमें पता चलता है कि बड़ी संख्या में ऐसी घटनाएं हुई हैं, जो उन बड़ी चुनौतियों के प्रति हमें आगाह करती हैं, जिनका सामना एक राष्ट्र के रूप में करना पड़ता है। हाल ही में हैदराबाद में आतंकवाद की जघन्य कार्रवाई हुई, जिसमें कई निर्दोष लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। आम नागरिकों को आतंकित करने और सुरक्षा-तंत्र को हतोत्साहित करने के मकसद से इस कार्रवाई को अंजाम दिया गया। नक्सलवादियों ने नेल्लौर के निकट एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री की हत्या करने का प्रयास किया। पूर्वोत्तार के कुछ राज्यों, खासकर असम, मणिपुर और नागालैंड में हिंसा की वारदातें जारी हैं। असम में जातीय हिंसा की घटनाएं विशेष रूप से चिन्ता का विषय हैं। जम्मू-कश्मीर की स्थिति में कुल मिलाकर कुछ सुधार हुआ है लेकिन यदा-कदा हिंसा की घटनाएं वहां भी हो रही हैं। और इतना ही नहीं, हम अति-सतर्कता की अनेक ऐसी धटनाएं भी देख रहे हैं जहां नागरिक कानून को हाथ में ले लेते हैं। बिहार में विशेष रूप से ऐसी घटनाएं हुई हैं। इनमें से कुछ घटनाएं व्यक्तिगत हताशा का परिणाम हो सकती हैं, जबकि कुछ का कारण कानून लागू करने वाली एजेंसियों की कार्य-प्रणाली और न्याय-प्रणाली को लेकर उपजा असंतोष भी हो सकता है।
इन घटनाओं -और ऐसी ही अन्य घटनाओं, जिनसे आप भली-भांति परिचित हैं-से हमें निरन्तर यह सबक लेना चाहिए कि आंतरिक सुरक्षा-व्यवस्था में और सुधार की आवश्यकता है। हमें बेहतर पुलिस बलों की आवश्यकता है-जो सभी अर्थों में बेहतर हों-चाहे प्रशिक्षण की बात हो, कौशल की बात हो, साज-सामान की बात हो, संसाधनों का मामला हो या गतिशीलता या फिर नजरिए की बात हो। हमें उत्कृष्ट गुप्तचर क्षमताओं की आवश्यकता है, जो भावी खतरों के प्रति चौकसी बरत सके। हमें अधिक अनुशासित होने, राजनीतिक हस्तक्षेप कम करने और भ्रष्टाचार समाप्त करने की जरूरत है। इस दिशा में आपके प्रयासों को प्रोत्साहित करने के प्रति हम वचनबध्द हैं। किन्तु, आपको अपनी कमान के अंतर्गत आने वाले बलों का अपेक्षित नेतृत्तव और मार्ग-दर्शन करना होगा
हमें नक्सलवाद के खतरों को समाप्त करने के लिए अधिक प्रतिबध्दता के साथ मिलकर काम करना होगा। मैं पहले भी यह कहता रहा हूं कि नक्सलवाद की समस्या के कई आयाम हैं। एक तरफ अलगाव की भावना दूर करने के लिए विकास के मोर्चे पर संगठित प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पुलिस बलों को भी अपने प्रयास दुगुने करने की आवश्यकता है ताकि इस संकट से भली-भांति निपटा जा सके। आन्ध्रप्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने यह सिध्द कर दिया है कि दृढ़ इच्छा-शक्ति हो तो रास्ता निकल ही आता है। अन्य राज्यों को भी उसी प्रतिबध्दता के साथ काम करना होगा, ताकि इस संकट को दूर किया जा सके।
आतंकवाद आज हमारे युग की वैश्विक समस्या के रूप में उभर रहा है। आतंकवादी गुटों में बड़ी हटधर्मिता, कट्टरपन और दुष्प्रेरणा का सामना कर रहे हैं। उनके इरादे नापाक हैं और लक्ष्य नकारात्मक हैं। गंभीर आतंकवादी खतरों का सामना करने के लिए हमें परंपरागत तोर-तरीकों से नए तरह के उपायों पर ध्यान देना होगा।
पूर्वोत्तर और जम्मू कश्मीर की सुरक्षा समस्याओं के कई आयाम हैं जो इन क्षेत्रों से सम्बध्द खास पहलुओं से जुड़े हैं। सरकार कई मोर्चों पर काम कर रही है। इनमें बातचीत की प्रक्रिया, विकास गतिविधियों को बढ़ावा देना और परिष्कृत संचार संपर्क की व्यवस्था जैसे उपायों के जरिये समस्याओं से निपटना शामिल है। इसमें एक मुद्दा यह है कि पुलिस बलों को सामान्य नागरिकों के लिए सुनिश्चित और सुरक्षित वातावरण कायम करने के लिए निरंतर लगे रहना पड़ता है।
मैं आपका ध्यान एक महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर दिलाना चाहता हॅू, जिसकी अक्सर उपेक्षा की जाती है। ये मुद्दा निश्चित रूप से ऊंचे तामझाम से नहीं जुड़ा है बल्कि आम नागरिकों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह ऐसे मामलों में कानून और व्यवस्था बनाए रखना, जिनका सम्बन्ध सीधे हमारे नागरिकों के साथ है। किसी भी पुलिस बल के लिए यह बुनियादी कार्य होता है, जिसकी अन्य दबावों की वजह से उपेक्षा हो जाती है। आप सभी को अपने से यह सवाल करना चाहिए कि पुलिस के साथ लोगोें का क्या सरोकार है ? लोग किसी पुलिस बल से क्या उम्मीद करते हैं ? और क्या हम उनकी प्राथमिकताओं को प्रभावकारी ढंग से पूरा करते हैं ? मेरा यह मानना है कि नागरिक एक ऐसा सुरक्षित वातावरण चाहते हैं जिसमें वे जी सकें और अपनी गतिविधियों को अंजाम दे सके। नागरिकों के जानमाल की सुरक्षा उनकी प्राथमिकता है। लोगों की पीड़ाओं के केन्द्र में गड़बड़ी पैदा करने वाले, स्थानीय आपराधियों और गिरोहों द्वारा तंग किए जाने, गुंडागर्दी, दादागिरी जैसी घटनाएं रहती हैं। इसके साथ ही कुछ क्षेत्रों में हिंसा के खतरे और अपहरण तथा फिरौती जैसी घटनाओं का सामना लोगों को करना पड़ता है। महिलाएं और वरिष्ठ नागरिक अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित देखे गए हैं। लड़कियों को छेड़छाड़ की बढ़ती घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है। माता-पिता बच्चों के साथ दर्ुव्यहार को लेकर चिंतित हैं। जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ रहा है, ये अपराध भी बढ़ रहे हैं। सफेदपोश अपराधों में भी वृध्दि हो रही है। क्या हम इन समस्याओं के साथ ठीक से निपट पा रहे हैं ? इन चिंताओं को दूर करके ही कोई पुलिस बल नागरिकों की आकांक्षाओं पर खरा उतर सकता है और उनका विश्वास और प्रेम जीत सकता है। लोग किसी पुलिसकर्मी से संपर्क करने के इच्छुक उतने ही सहज रूप में होने चाहिए, जितनी सहजता से वे किसी डाक्टर के साथ संपर्क करते हैं। यह हमारा साझा प्रयास होना चाहिए।
आपराधिक न्याय प्रणाली में तत्काल सुधारों की आवश्यकता है। इस संदर्भ में न्यायमूर्ति मलिमथ समिति की रिपोर्ट हमारे सामने हैं। डाक्टर माधव मेनन की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा ''आपराधिक न्याय के बारे में राष्ट्रीय नीति पत्र के मसौदे'' के लिए किया गया कार्य भी विचारणीय हैं। मुझे खुशी है कि गृह मंत्री ने इन रिपोर्टों पर कार्रवाई शुरू कर दी है। आपराधिक न्याय प्रणाली में अपेक्षित परिवर्तनों के लिए हमें तेजी से और प्रतिबध्द होकर काम करने की आवश्यकता है। आपराधिक न्याय प्रणाली एक ऐसा सामाजिक वातावरण बनाने में सक्षम होनी चाहिए, जो समान और कारगर विकास तथा सामाजिक न्याय के अनुकूल हो।
मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि ये सिफारिशें दो श्रेणियों से सम्बध्द है। पहली श्रेणी में वे सिफारिशें आती हैं जिनपर व्यापक विचार-विमर्श और आम सहमति की आवश्यकता है। दूसरी श्रेणी में ऐसी सिफारिशें हैं जिन्हें अल्पावधि में ही कार्यान्वित किया जा सकता है। मुझे उम्मीद है कि बड़ी संख्या में मुद्दों पर तेजी से कार्रवाई की जा सकेगी। इनमें बहुसंख्य आपराधिक संहिताएं, साक्ष्य, सुनवाई प्रक्रियाओं, अदालतों द्वारा फिर से जांच के आदेश देने, स्वीकार्य दोष स्वीकरण, पीड़ितों और गवाहों की संरक्षा आदि मुद्दे शामिल हैं। मुझे खुशी है कि गृह मंत्री ने राष्ट्रीय पुलिस मिशन की संचालन समिति की एक बैठक की अध्यक्षता की है। यह मिशन हमारे पुलिस बलों को एक नयी दिशा प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए और इसके माध्यम से पुलिस की कार्य प्रणाली और शैली में व्यापक परिवर्तन आना चाहिए।
इस मिशन के माध्यम से हमें पुलिस की कार्य प्रणाली की कड़ी पड़ताल करने की आवश्यकता है। उसे अधिक जवाबदेह बनाना होगा और उनके कौशल और योग्यता, खासकर निचले स्तर के पुलिसकर्मियों को अधिक कुशल और योग्य बनाना होगा, क्योंकि उसी स्तर पर लोग पुलिस बलों के संपर्क में आते हैं। पुलिस बलों में उत्कृष्टता की शैली अवश्य विकसित करनी होगी। हमें पुलिस की कार्य प्रणाली में आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी का बेहतर इस्तेमाल भी अवश्य करना होगा ताकि उन्हें प्रौद्योगिकी की दृष्टि से सक्षम और सुसज्जित बनाया जा सके।
पुलिस मिशन को सामुदायिक पुलिस व्यवस्था जैसे आधुनिक पुलिस मुद्दों का अध्ययन करने की भी आवश्यकता है। मैं चाहता हॅू कि मिशन प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न किए जाने जैसी समस्याओं के बारे में कुछ व्यवहारिक समाधान सुझाए। मिशन भीड़ को तितर-बितर करने के नए तौर-तरीकों की भी पड़ताल कर सकता है और प्रयोगकर्ता के अनुकूल पुलिस वर्दी विकसित करने के बारे में सुझाव दे सकता है। मिशन को अपराध की अंतर-राज्यीय और अंतर-राष्ट्रीय शाखाओें पर ध्यान देना होगा और साथ ही आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था, विशेषकर कथित ''संघीय अपराधों'' के संदर्भ में सुरक्षा व्यवस्था का भी अध्ययन करना होगा। मैं चाहता हॅू कि हमारे विश्वविद्यालय और विधि केन्द्र इस तरह के अध्यनों के साथ जुड़ें। गृह मंत्रालय विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों में व्यावसायिक पीठों और अनुसंधान परियोजनाओं के लिए धन उपलब्ध कराने पर विचार कर सकता है ताकि ऐसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों के बारे में अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा सके।
मैं एक बार फिर से पहले कही गयी बात को निष्कर्ष रूप में दोहराना चाहूंगा। नागरिकों की समस्याओं को समझें, उनकी जरूरतों और आकांक्षाओं को पहचानें और वरीयता के अनुसार उनका समाधान करें। अपने संतुष्टि के स्तरों में सुधार करने की कोशिश करें। आप इसके लिए जिन उपकरणों और तौर-तरीकों को अपनाने का निर्णय करें वे इस लक्ष्य के अनुरूप होने चाहिए। हमारी सरकार इस नेक उद्देश्य में आपके प्रयासों का पूरा समर्थन करेगी।
मैं एक बार फिर उस महत्वपूर्ण दायित्व के बहादुरी पूर्वक निर्वाह के लिए आपको बधाई देता हॅू। मुझे उम्मीद है कि यह सम्मेलन आपके कार्य की नयी दिशाएं तय करने में सक्षम होगा और इससे पुलिस को सार्वजनिक सेवा का अधिक कारगर माध्यम बनाने में मदद मिलेगी।
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