देवानंद की जीवनी 'रोमांसिंग विद लाइफ' के विमोचन के अवसर पर प्रधामनंत्री डा0 मनमोहन सिंह का वक्तव्य

देवानंद की जीवनी 'रोमांसिंग विद लाइफ' के विमोचन के अवसर पर प्रधामनंत्री डा0 मनमोहन सिंह का वक्तव्य

प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह ने कल यहां हिंदी फिल्मों के सदाबहार नायक देवानंद की जीवनी 'रोमांसिंग विद लाइफ' का विेमोचन किया। देवानंद की 84वीं वर्षगांठ पर उन्हें बधाई देते हुए डा0 सिंह ने कहा कि देवानंद का जीवन भारतीय फिल्म उद्योग में अवसर और रचनात्मकता का प्रतीक है।

डा0 मनमोहन सिंह द्वारा इस अवसर पर दिए गए के भाषण का पाठ इस प्रकार है :

''देवानंद जी को उनके 84वें जन्मदिवस पर बधाई देने के मौके पर उपस्थित होना हमारे लिए गौरव की बात है। विश्वभर में उनके लाखों प्रशंसकों और हितैषियों के साथ मैं भी आने वाले वर्षों में देवानंद जी की दीर्घायु, उत्ताम स्वास्थ्य और अधिक रचनात्मक जीवन की कामना करता हूं। 84 वर्ष की आयु में भी वे न केवल दिल से जवान हैं, बल्कि देखने में भी युवा लगते हैं। मुझे विश्वास है कि आने वाली कई पीढ़ियां देवानंद की प्रशंसक होंगी और वे हमेशा आनंदप्रद, रोमानी और प्रीतिकर कलाकार के रूप में याद किए जायेंगे। वे संभवत: पिछली आधी सदी में सर्वाधिक चहेते रोमानी कलाकार रहे हैं। इसलिए यह उपयुक्त ही है कि देवानंद जी ने अपनी जीवनी का नाम ''रोमांसिंग विद लाइफ'' रखा है।

किंतु, उनकी जीवनी के शीर्षक से अथवा उनकी अनेक आनंदप्रद फिल्मों के संदेश से यह निष्कर्ष निकाल लेना अनुचित होगा कि युवा काल में देवानंद जी की स्वयं की जिंदगी आमोद-प्रमोद से भरी रही हो। मामूली संसाधनों से संपन्न मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखने वाले देवानंद को बचपन और जवानी में अभाव और विस्थापन का सामना करना पड़ा। अपनी पीढ़ी के हजारों पुरुषों और महिलाओं की भांति देवानंद को भी विभाजन की विभीषिका का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्हें भी मौजूदा पाकिस्तान से मजबूरन अपनी सरजमीं छोड़कर स्वतंत्र भारत में आना पड़ा था।

मैं जानता हूं कि नई जिंदगी की तलाश में मुंबई पहुचंने पर उन्हें भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन संकट के उन वर्षों की दुख-तकलीफ़ें उनके व्यक्तित्व और प्रतिभा के विकास को रोक न पायीं। जल्दी ही उन्होंने भारतीय सिनेमा जगत में अपना सही स्थान खोज लिया, और भारतीय सिनेमा ने भी अमर देवानंद की खोज कर ली। वे राजकपूर, दिलीप कुमार, और देवानंद की उस त्रिमूर्ति में शामिल हो गए, जिसने प्रत्येक भारतीय के दिल पर राज किया। उन्होंने पांच दशकों में सुरैया और वहीदा रहमान से लेकर मधुबाला और ज़ीनत अमान तक सभी उत्कृष्ट नायिकाओं के साथ अभिनय किया।  उनकी फिल्मों के विषय अत्यंत व्यापक रहे हैं। गाइड, हम दोनों, और प्रेम पुजारी जैसी फिल्मों में जो किरदार देवानंद ने निभाया, उसे कौन भूल सकता है।

देवानंद जी का जीवन भारतीय फिल्म उद्योग में अवसर और रचनाशीलता पैदा करने के प्रति समर्पित रहा है। देवानंद जैसे फिल्म निर्माताओं की प्रतिभा और उद्यमशीलता की बदौलत ही आज अनेक युवक-युवतियां फिल्म जगत में अपने सपने साकार कर रहे हैं, और आजीविका कमाने के साथ साथ अपनी छाप छोड़ रहे हैं। मैं उनकी रचनात्मकता की प्रशंसा करता हूं, उनकी उद्यमशीलता का कायल हूं, उनकी संवेदना से प्रभावित हूं, और सबसे अहम उनकी गहरी राष्ट्रभक्ति को नमन करता हूं।

भारतीय फिल्म उद्योग, विशेषकर हिंदी फिल्म जगत ने कई मायनों में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के भारत के मानस का निर्माण किया है। हमारे इस विस्तृत और विविध राष्ट्र को भावात्मक एकता के सूत्र में पिरोने में जो योगदान फिल्म उद्योग का रहा है, वैसी सफलता किसी अन्य संस्थान को नहीं मिली है। समूचे देश को भाषा की दृष्टि से एक सूत्र में बांधने और हिंदी को लोकप्रिय बनाने का जो काम हिंदी सिनेमा में अपनायी गयी बोलचाल की भाषा ने किया, वह राजभाषा हिंदी, या सरकारी हिंदी नहीं कर पायी। यह बेजोड़ भाषा है, जो शुध्द हिंदी, भोजपुरी और हैदराबादी बोलियों तथा उर्दू और मराठी जैसी बोलचाल की भाषाओं से मिलकर बनी है। फिल्म उद्योग ने देशभर की शैलियों के मिश्रण से बातचीत की एक ऐसी हिंदी को लोकप्रिय बनाया है, जो हम सभी को हिंदुस्तानी के रूप में एक सूत्र में बांधने में कामयाब रही है। इसलिए मैं इस अवसर पर हिंदी फिल्म उद्योग और देवानंदजी जैसे महानतम कलाकारों की सराहना करता हूं।

मैं नियमित रूप से फिल्म देखने वालों में नहीं हूं, और भारतीय सिनेमा में नई प्रवृत्तियों की अधिक जानकारी मुझे नहीं है। लेकिन, मैं इस तथ्य को समझता हूं कि भारतीय फिल्म उद्योग ने दुनिया के कोने-कोने में अपनी जगह बनायी है। प्रशांत सागर के द्वीपों से लेकर अटलांटिक सागर तक, अफ्रीका के सुदूरतम दक्षिणी भाग से लेकर साइबेरिया के बर्फीले रेगिस्तानों तक, पश्चिम अफ्रीका के कस्बों से लेकर पूर्वी एशिया के शहरों तक और उत्तर अमरीका के उपनगरों से लेकर एशिया के गांवों तक, पूरी दुनिया में, पूरे विश्व में भारतीय फिल्मों का सूरज कभी अस्त नहीं होता।  हॉलीवुड में हो सकता है अधिक धन निवेशी हो, उनका व्यापार बड़ा हो सकता है, लेकिन मेरा विश्वास है कि वास्तव मेेंं पूरी दुनिया में बॉलीवुड फिल्में देखने वालों की संख्या अधिक है। भारतीय फिल्म को देखकर ज्यादा संख्या में लोग हंसते और आंसू बहाते हैं, अधिक संख्या में लोग गाते और खुशी मनाते हैं।

इसलिए रचनाशीलता और उद्यमशीलता की उस महान गाथा, जिसका प्रतिनिधित्व भारतीय सिनेमा करता है, में योगदान के लिए हमें देवानंद जैसे महान कलाकारों को विशेष शुभकामनाएं अवश्य देनी चाहिए। मुझे उम्मीद है कि उनकी जीवनी भारत की नई पीढ़ियों को अधिक रचनात्मक जीवन के लिए प्रेरित करेगी। देवानंदजी समृध्द जीवन के ऐसे विशिष्ट वर्ग से संबंध रखते हैं, जहां समृध्दि को कठिन श्रम और समर्पण के साथ हासिल किया जाता है।

       देवानंद का जीवन भारत की प्रगति का दर्पण है। 60 वर्ष पहले जब उन्होेंने फिल्मों में अभिनय करना शुरू किया तो भारत एक निर्धन और पिछड़ा राष्ट्र था। आज भारत दुनिया के अग्रिम पंक्ति के देशों में शामिल है। हमें अभी गरीबी, अज्ञानता, और बीमारियों के खिलाफ युध्द जीतना है। लेकिन आज हम अधिक दृढ़ता और विश्वास के साथ कह सकते हैं कि इस युध्द को हम वास्तव में जीत लेंगे। अतीत में पूरे विश्वास क ेसाथ हम आगे बढ़े हैं, और इस यात्रा को जारी रखना होगा। मुझे उम्मीद है कि देवानंद जी जैसे लोकप्रिय रचनाशील कलाकार लोगों को प्रेरित करते रहेंगे, और उन्हें मिलकर सार्थक कार्यों के लिए कठिन श्रम करने के लिए प्रोत्सािहत करेंगे। गाइड फिल्म के इस लोकप्रिय गीत की ये पंक्तियां देवानंद की जीवन शैली पर सटीक बैठती हैं : 'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया; हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया'

मुझे विश्वास है कि देवानंद जी को अभी जीवन का लंबा सफर तय करना है। किसी शायर ने कहा है कि ''सितारों के आगे जहां और भी है, अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं।'' इन शब्दों के साथ मैं एक बार फिर देवानंद जी के लंबे रचनात्मक जीवन की कामना करता हूं, ताकि वे प्रशंसकों की एक और पीढ़ी का मनोरंजन कर सकें और उसे प्रेरित कर सकें।'

 

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