संस्कृत विद्वान अनुसंधान कार्य में तेजी लाएं --अर्जुन सिंह
संस्कृत विद्वान अनुसंधान कार्य में तेजी लाएं --अर्जुन सिंह
सरकार ने संस्कृत भाषा की समृध्द विरासत के संरक्षण, प्रोत्साहन और विकास के लिए केन्द्रीय संस्कृत बोर्ड के स्थान पर व्यापक आधार वाले राष्ट्रीय संस्कृत परिषद का गठन किया है । परिषद राज्य सरकारों, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद और राष्ट्रीय अध्यापन प्रशिक्षण परिषद को सलाह देगी । मानव संसाधन विकास मंत्री श्री अर्जुन सिंह ने आज यहां राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (सम विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली) के दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करते हुए यह बात कही । फ्रांस, जर्मनी, जापान, पोलैंड, इंगलैंड, अमरीका, इटली, रूस और थाईलैंड में संस्कृत अध्ययन की परंपरा अब भी बरकरार रहने का उल्लेख करते हुए मंत्री महोदय ने कहा कि संस्कृत केवल भारत को ही नहीं बल्कि विश्व को भी एक सूत्र में जोड़ने की शक्ति है । संस्कृत अपने वैज्ञानिक और व्यावहारिक स्वरूप के कारण कंप्यूटर के लिए सर्वश्रेष्ठ भाषा मानी जा रही है ।
श्री सिंह ने कहा कि विश्व की भाषाओं में संस्कृत का एक विशिष्ट स्थान है । सभी प्राचीन भाषाओं में केवल संस्कृत ही सबसे पुरानी भाषा है, जो आज भी प्रयोग में जीवित है । संस्कृत ज्ञान और विज्ञान का भंडार है, इसलिए अछूते विषयों पर अनुसंधान के लिए जोर दिया जाना चाहिए ।
मंत्री महोदय ने विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखितसंपादितअनुवादित 12 पुस्तकों का विमोचन और जयपुर, लखनऊ, पुरी तथा श्रंगेरी के चार परिसरों में संस्थान की 21 इमारतों के अलावा संस्थान के दूरस्थ शिक्षा पाठयक्रम का भी उद्धाटन किया ।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो. सुखदेव थोराट ने अपने दीक्षांत भाषण में कहा कि संस्कृत के ज्ञान के बिना भारत की संस्कृति और विरासत को समझना संभव नहीं होगा ।
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के कुलपति आचार्य वेमपति कुटुम्बशास्त्री ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इस समय देश में संस्थान के पास 1,06,000 वर्गमीटर में इमारतें और 90 एकड़ जमीन है । संस्थान के पास 1800 छात्रों के लिए छात्रावास हैं और पुस्तकालय में 3,50,000 किताबें और 72000 पांडुलिपियां हैं ।
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