दर्शाण काल की कला और संस्कृति के अवशेष रायसेन जिले से लेकर झांसी तक

संजय गुप्‍ता मांडिल, मुरैना ब्‍यूरो चीफ
मुरैना, 29 फरवरी, 08/दर्शाण काल की कला और संस्कृति रायसेन जिले से लेकर झांसी तक प्राप्त होती है। यह काल पुरातत्वीय महत्व के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। उक्त जानकारी पिछले दिनों विदिशा में आयोजित पुरातत्व वेत्ताओं की एक संगोष्ठी में उजागर हुई है। संगोष्ठी का उद्धाटन कलेक्टर विदिशा श्री योगेन्द्र शर्मा ने किया था।
कलेक्टर श्री शर्मा ने इस मौके पर कहा कि विदिशा जिला पुरा संपदा की दृष्टि से काफी समृध्द रहा है। यहां के स्मारकों के बारे में जनसामान्य की जानकारी के लिए और अधिक शोध किये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने इस मौके पर डॉ. नारायण व्यास की कृति 'बैस नगर' विदिशा पुस्तिका का विमोचन किया।
संगोष्ठी में बताया गया कि विदिशा एवं एरकछ (झांसी के निकट) प्राप्त अवशेष इंगित करते हैं कि यह क्षेत्र लोहा उपकरण एवं तलवार, सिक्कों के निर्माण के लिये तत्कालीन अवधि में काफी प्रसिध्द रहा है। विदिशा का उल्लेख रामायण, मेघदूत, मालविकाग्निमित्रम् के अलावा सात वाहन कुषाण, भारशिव, नागवंशी, गुप्तकाल, प्रतिहार, परमार कालीन जानकारी यहां प्राप्त धूसर मृद्भाण्ड, मंदिरों की शैली, प्रतिमाएं, खान-पान के अलावा संस्कृति की जानकारी यहां आसानी से प्राप्त होती है।
शोध संगोष्ठी में पुरातत्व वेत्ता प्रोफेसर रहमान अली, डॉ. रामकुमार अहिरवार, डॉ. आर. ठाकुर, डॉ. ओ.पी. मिश्रा, डॉ. नरेश कुमार पाठक, डॉ. प्रभा ने अपने-अपने शोध पत्रों को पढ़ा।

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