इंडियन लैंग्वेज न्यूज पेपर्स ऐसोसिएशन की बैठक में प्रधानमंत्री का भाषण

इंडियन लैंग्वेज न्यूज पेपर्स ऐसोसिएशन की बैठक में प्रधानमंत्री का भाषण

प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने आज यहां इंडियन लैंग्वेज न्यूजपेपर्स ऐसोसिएशन की 66वीं आम बैठक को सम्बोधित किया। उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं#प्रकाशनों से सम्बध्द पत्रकारों को भाषा पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए पुरस्कार भी प्रदान किए।

    इस अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए भाषण का पाठ इस प्रकार है :

''भारतीय भाषाओं के प्रकाशन से सम्बध्द प्रतिष्ठित पत्रकारों और अखबार कर्मियों की इस बैठक में उपस्थित होने पर मुझे बेहद खुशी हुई है। आप सभी ने राष्ट्र निर्माण की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है और अभी योगदान का यह सिलसिला जारी है। मैं आप सब में से उन व्यक्तियों को बधाई देता हॅू जिन्होंने आईएलएनए का अत्यंत प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किया है। यह पुरस्कार हाल के वर्षों में भारतीय भाषाओं के अखबारोें के क्षेत्र में प्रभावशाली कार्य निष्पादन के लिए दिया जाता है। 

     दुनिया भर में यह आशंका व्यक्त की जाती रही है कि टेलीविजन और इंटरनेट के विकास से पत्र-पत्रिकाओं का अस्तित्व समाप्त हो गया है। अनेक देशों में अखबारों के पाठकों की संख्या कम हो रही है। भारत में भी अंग्रेजी भाषा में छपने वाले पत्र-पत्रिकाओं के विकास में कमी आयी है। इन गतिविधियों के बावजूद मुझे बेहद खुशी हुई है कि भारतीय भाषाई अखबारों पर इस प्रवृत्ति का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा है। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि भारतीय भाषाई अखबारों के पाठकों और अखबारों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसके लिए मैं आप सभी के प्रयासों की सराहना करता हॅू।

     हमने भारत में पाठकों और मीडिया दर्शकों की संख्या में अभूतपूर्व वृध्दि देखी है। इसका श्रेय साक्षरता की दर में बढ़ोतरी, राजनीतिक जागरूकता और आय के बढ़ते स्तरों के साथ-साथ शहरीकरण की प्रक्रियाओं को दिया जा सकता है। यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि आज हम भारतीय मीडिया के स्वर्ण युग में जी रहे हैं। आपके बाजार का विस्तार होने से रोजगार के अवसरों और मीडिया से सम्बध्द अन्य उद्योगों एवं सेवाओं के विकास में मदद मिली है। मैं आपकी साहसिकता, उद्यमशीलता और रचनाशीलता के लिए सराहना करता हॅू।

     अखबारों की संख्या में वृध्दि से आपके पाठकों और दर्शकों के समक्ष अधिक विकल्प भी उपलब्ध हुए हैं। जनमत और कवरेज की दृष्टि से आज अधिक विविधता देखने को मिलती है। लोग अपने नजरिये, अमदनी और रूचि के अनुसार किसी भी अखबार या चैनल का चुनाव कर सकते हैं। लोकतंत्र में इस तरह की विविधता स्वागत योग्य है। मैं भारतीय भाषाई प्रकाशनों में मुद्रण और प्रकाशन की गुणवत्ता से भी प्रभावित हुआ हॅू। ये सभी बातें हमारे लिए प्रसन्नता का विषय है। मुझे उम्मीद है कि आपका संगठन इन उपलब्धियों से संतुष्ट होगा क्योंकि ये सभी आपके व्यावसाय के विकास के प्रभावशाली पहलू हैं।

      दूसरी ओर मैं कुछ मुद्दों की ओर आपका ध्यान आवश्य दिलाना चाहूंगा। मेरी राय है कि आपको उनपर अपनी राय अवश्य व्यक्त करनी चाहिए। मैंने पहले भी कहा है कि भारतीय मीडिया में मात्रात्मक बढ़ोतरी से  गुणात्मक विकास प्रभावित हुआ है। इसे कुछ हद तक सहज स्वाभाविक माना जा सकता है क्योंकि मांग अधिक होने से भलि भांति प्रशिक्षित पत्रकारों की पूर्ति नहीं हो पाई है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले समय में उचित संख्या में पत्रकार उपलब्ध होंगे और कमी की यह समस्या दूर हो जायेगी। लेकिन आपके उद्योग को इससे चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।

     मुझे पूरा भरोसा है कि आपकी एसोसिएशन देश में पत्रकारिता की गुणवत्ता में सुधार लाने की चुनौती पर अधिक ध्यान देगी। आप ऐसा माध्यम है जिससे आधुनिकता, विकास, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक न्याय के संदेश देश के कोने-कोने में पहुंचाए जा सकते हैं। आपको साम्प्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बढ़ावा देना होगा जो हमारे राष्ट्र का आधार हैं। आपको हमारे समाज और राजनीति में बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी होगी।

    इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय भाषाई मीडिया पर यह गुरूतर दायित्व है। देश के अधिसंख्य लोग दुनिया को आपके नजरिये से देखते हैं। आपकी कवरेज के माध्यम से ही लोगों को स्वयं अपने क्षेत्र और देश में हो रहे परिवर्तनों की जानकारी मिलती है। आप अपने अखबारों में जो विचार प्रकाशित करते हैं उनसे जनमत तैयार होता है। इसलिए आपके समक्ष यह चुनौती है कि आप लोगों के दृष्टिकोण में बदलाव लाकर भारत को आगे बढ़ाने में मदद करें। आधुनिकीकरण का अर्थ सिर्फ बेहतर बुनियादी सुविधाएं जुटाना मात्र नहीं है। इसका अर्थ अधिक सुख-सुविधाएं या वेशभूषा और रहन-सहन के बेहतर साधन उपलब्ध कराना मात्र भी नही है। आधुनिकीकरण वास्तव में लोगों के दृष्टिकोण का अंतिम विश्लेषण है।

       भारत जैसे सदियों से आबाद देश में सफल आधुनिकीकरण का आधार हमारी परम्पराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों में निहित है। साथ ही हमें परम्परागत मूल्यों और मानदण्डों को बदलते समय की जरूरतों के मुताबिक नया रूप देने की भी आवश्यकता है। उदाहरण के लिए जाति के  प्रति, महिलाओं और शारीरिक श्रम के प्रति हमारे नजरिए में बदलाव जरूरी है। इस बदलाव से हमारे लोग, विशेषकर महिलाएं और समाज के दलित वर्ग ये महसूस कर सकेंगे कि वे सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का हिस्सा हैं। वे यह समझ सकेंगे कि सामाजिक और आर्थिक विकास में उनकी प्रभावकारी हिस्सेदारी है।

       आधुनिकीकरण को पश्चिमीकरण भी नहीं समझा जाना चाहिए। इसका यह अर्थ नहीं है कि हमारी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को परिभाषित करने वाले सभी मूल्यों को नकारा जाए। आधुनिकीकरण को इस रूप में समझना चाहिए कि यह बदलती हुई दुनिया के साथ संपर्क का एक माध्यम है। यह एक पक्रिया है जिसके जरिए हम आज की दुनिया को दिशा देने वाले नए विचारों और अनुभवों में से कल्याणकारी और रचनात्मक का चयन कर सके। मुझे उम्मीद है कि हमारे संपादक और पत्रकार इस विचार को लोगों में संप्रेषित कर सकेंगे ताकि एक राष्ट्र के रूप में हम बदलती हुई फिजाओं के साथ बेहतर ढंग से पेश आ सकें।

       लोकतांत्रिक प्रणाली में मीडिया को प्रहरी के रूप में भूमिका अदा करनी होती है। सरकार को भी मीडिया में की जा रही आलोचना और सुधार के उपायों से लाभ पहुंचता है। हमने समाज के निचले स्तर के लोगों के लिए बड़ी संख्या में कार्यक्रम शुरू किए हैं जिनका उद्देश्य लोगों को अधिकारिता प्रदान करना है ताकि वे विकास की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी अदा कर सकें। यदि इन कार्यक्रमों को ईमानदारी से और प्रभावशाली ढंग से लागू किया जाए तो निश्चय ही वे अगले चार या पांच वर्षों में ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल देंगे। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी कार्यक्रम, जिसका विस्तार हमने सभी ग्रामीण जिलों में करने का फैसला किया है, को यदि ईमानदारी और गंभीरता के साथ लागू किया गया तो इससे ग्रामीण आय के प्रवाह में बढ़ोतरी होगी और निश्चित रूप से हम घोर गरीबी से लोगों को छुटकारा दिलाने में मदद कर सकेंगे। लेकिन, कुछ खामियां हैं, कुछ प्रशासनिक कमजोरियां हैं जिन पर ध्यान देना होगा और मीडिया तथा सामाजिक संगठनों का यह दायित्व है कि इन कमजोरियों को उजागर किया जाए, ताकि इन कार्यक्रमों को सही ढंग से लागू किया जा सके। लोकतंत्र में यह अत्यन्त आवश्यक है। किन्तु आलोचना ऐसी नहीं होनी चाहिए जिससे संदेह या नकारात्मक भावनाओं को बढ़ावा मिले। आलोचना से रचनात्मक परिवर्तन को बढ़ावा मिलना चाहिए और लोगों में उम्मीद जाग्रत होनी चाहिए। ऐसी आलोचना का मैं स्वागत करूंगा और मुझे उम्मीद है कि हमारा मीडिया रचनात्मक और विकासात्मक भूमिका में योगदान जारी रखेगा। इससे देश मजबूत होगा और लोगों को अधिकार सम्पन्न बनाया जा सकेगा। सामाजिक एकता और सांप्रदायिक सद्भाव, देश के नागरिकों के बीच स्वदेशी की भावना पैदा करने में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है। श्री सुनील डांग ने कुछ मुद्दे उठाए हैं, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। मैने वास्तव में अपने सहयोगी माननीय सूचना और प्रसारण मंत्री से कहा था कि लघु और मध्यम समाचार पत्रों की उचित कठिनाइयों को हल करना सरकार का पुनीत कर्तव्य है। ............ (व्यवधान) सरकार अखबार उद्योग के इस खंड के विस्तार और विकास की प्रक्रिया में हर संभव योगदान करेगी। सरकार यह समझती है कि हमारे विशाल राष्ट्र की विकास प्रक्रिया में इन अखबारों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

       माननीय मंत्री, यहां नहीं है, लेकिन उन्होंने मुझे आश्वासन दिया है कि वे इन मुद्दों पर काम करेंगे। मुझे विश्वास है कि कल ही कुछ उपाय शुरू किए गए हैं। लेकिन मेरा मानना है कि कुछ और उपाय जरूरी होंगे, तो हम आपके क्षेत्र से संबध्द संपादकों और पत्रकारों के साथ बैठकर उचित कठिनाइयों पर विचार करेंगे और उन्हें दूर करने का प्रयास करेंगे। मैं आश्वासन देता हूँ कि हम इस उद्देश्य के लिए काम करेंगे। मेरी सरकार भारतीय भाषाई मीडिया के विकास के लिए हर संभव मदद करेगी। मुझे उम्मीद है कि आपका संगठन भारतीय भाषाई मीडिया की आशाओं और आंकाक्षाओं को पूरा करने के साथ-साथ हमारा मार्गदर्शन करेगा कि आने वाले वर्षों में हम किस तरह उनकी प्रगति में उचित भागीदार बन सकते हैं। इन शब्दों के साथ मैं आपके विचार-विमर्श की सफलता की कामना करता हूँ। आज जो पुरस्कार दिए गए हैं मुझे उन पर बेहद खुशी हुई है। इससे पता चलता है भारतीय भाषाई अखबार देश में कितनी प्रतिबध्दता और सक्षमता के साथ काम कर रहे हैं। मेरी कामना है कि आपके प्रयास फलीभूत हों और आपका मार्ग प्रशस्त हो।

 

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